ट्रांसपोर्टरों की हड़ताल को लेकर सरकार कभी गरम तो कभी नरम की नीति अपना रही है। इस वजह से लोगों की तकलीफें दूर होने का नाम नहीं ले रहीं। लेकिन जल्द ही इससे निजात मिल सकती है। ट्रक हड़ताल के खिलाफ एक जनहित याचिका पर सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होगी। इस पर फैसले का इंतजार सभी को है। यदि फैसला ट्रांसपोर्टरों के खिलाफ आया तो सरकार की सख्ती बढ़ जाएगी और ट्रांसपोर्टरों के हौसले एकदम पस्त हो जाएंगे।
वैसे सरकार का दावा है कि ट्रक हड़तालियों के हौसले टूटने लगे हैं। उसका कहना है कि कई क्षेत्रीय संगठनों ने हड़ताल खत्म कर दी है। ट्रक मालिक भी सरकार के साथ हैं। जनता तो हड़तालियों के साथ नहीं ही है। ऐसे में हड़ताली कभी भी हथियार डाल सकते हैं।
सुप्रीम कोर्ट के एक वकील ने शुक्रवार को ट्रांसपोर्टरों की हड़ताल के खिलाफ जनहित याचिका दायर की थी। इसमें कहा गया है कि हड़ताल से आवश्यक वस्तुओं की कीमतें तथा जनता की तकलीफें बढ़ती जा रही हैं। याचिका में ट्रक हड़ताल को गैर कानूनी घोषित और ट्रकों के परमिट रद करने की मांग की गई है।
सरकार को पूरी उम्मीद है कि सुप्रीम कोर्ट सोमवार को जनता के हित में फैसला सुनाएगा। शायद यही वजह थी कि रविवार को परिवहन सचिव ब्रह्मा दत्त के तेवर तीखे थे। एक दिन पहले परिवहन मंत्री टी.आर. बालू ने हड़तालियों के प्रति काफी नरम रुख दिखाया था।
रविवार को ब्रह्मा दत्त ने कहा कि ट्रांसपोर्टर रोज नई मांगें रख रहे हैं, जिन्हें मानना संभव नहीं है। उन्होंने दावा किया कि तमाम क्षेत्रीय एसोसिएशन के हड़ताल से तौबा कर लेने के बाद हड़ताली ट्रांसपोर्टरों की हिम्मत टूटने ही वाली है। उन्होंने हड़ताल को राष्ट्रविरोधी भी बताया।
संवाददाताओं से बातचीत में ब्रह्मा दत्त ने कहा कि हड़ताल से निपटने के लिए 15-20 लाख ट्रकों का संचालन जल्द ही शुरू किया जाएगा। इस संबंध में विचार के लिए राज्यों के परिवहन मंत्रियों को सोमवार को दिल्ली बुलाया गया है। इस बैठक में आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए जरूरी उपायों पर चर्चा होगी। परमिट संबंधी ट्रांसपोर्टरों की मांग पर भी चर्चा होने की संभावना है।
परिवहन सचिव के मुताबिक हरियाणा के गुड़गांव, राजस्थान के जयपुर, महाराष्ट्र के पुणे तथा कर्नाटक के हासन समेत अनेक नगरों में क्षेत्रीय ट्रांसपोर्ट एसोसिएशन ने हड़ताल खत्म कर दी है। ट्रक मालिकों के संगठन आल इंडिया कंफेडरेशन आफ गुड्स वेहिकल ओनर्स [आइकोगोआ] ने हड़ताल से निपटने में सरकार को पूर्ण सहयोग का भरोसा दिया है। यह संगठन शुरू से ही हड़ताल से अलग है।
सरकार ट्रांसपोर्टरों के साथ पुचकार-दुत्कार की दोहरी नीति अपना रही है। परिवहन मंत्रियों की बैठक बुलाना भी इसी का हिस्सा है। सरकार का मानना है कि इससे जमीनी हकीकत का पता चलेगा और आगे की कार्रवाई में सहूलियत रहेगी। यदि राज्य सरकारों से सहयोग मिला और आइकोगोवा के ट्रक चल निकले तो आल इंडिया मोटर ट्रांसपोर्ट कांग्रेस [एआईएमटीसी] की अकड़ टूटने में वक्त नहीं लगेगा। वैसे भी तेल कंपनियों के अधिकारियों की ही तरह हड़ताली ट्रांसपोर्टरों के साथ भी जनता की रत्ती भर सहानुभूति नहीं है। इसलिए हड़ताल खत्म होना ज्यादा मुश्किल नहीं है।
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें